उत्तर प्रदेश का कौशाम्बी जिला

कौशाम्बी 

कौशांबी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। मंझनपुर इसका मुख्यालय है। बौद्ध भूमि के रूप में प्रसिद्ध कौशांबी उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। कौशांबी, बुद्ध काल की परम प्रसिद्ध नगरी, जो वत्स देश की राजधानी थी। इसका अभिज्ञान, तहसील मंझनपुर ज़िला इलाहाबाद में प्रयाग से 24 मील पर स्थित कोसम नाम के ग्राम से किया गया है। इस जिले में स्थितभरवारी सबसे घनी आबादी वाला छोटा सा शहर है जो कि खरीदारी के लिए मशहूर है। सबसे नजदीक वाला रेलवे स्टेशन भरवारी ही है जहां पर महाबोधि जैसी सुपरफास्ट ट्रेन का स्टॉपेज है। जो कि कौशांबी को बुद्ध सर्किट से जोड़ता है ।ऐतिहासिक दृष्टि से भी कौशांबी काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतला मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरी और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इलाहाबाद के दक्षिण-पश्चिम से 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कौशांबी को पहले कौशाम के नाम से जाना जाता था। यह बौद्ध व जैनों का पुराना केंद्र है। पहले यह जगह वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी। माना जाता है कि बुद्ध छठें व नौवें वर्ष यहाँ घूमने के लिए आए थे। जिले का मुख्यालय मंझनपुर में है।

कौशांबी
—  जिला  —
Map of उत्तर प्रदेश with कौशांबी marked
भारत के मानचित्र पर उत्तर प्रदेश अंकित
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)

Flag of India.svg भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाकौशांबी
जनसंख्या14,150 (2001 के अनुसार )
क्षेत्रफल
• ऊँचाई (AMSL)

• 90 मीटर (295 फी॰)

प्राचीनतासंपादित करें

पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो राजा परीक्षित के वंशज (युधिष्ठिर से सातवीं पीढ़ी में) थे, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी में बनाई थी—अधिसीमकृष्णपुत्रो निचक्षुर्भविता नृपः यो गंगयाऽपह्नते हस्तिनापुरे कौशंव्यां निवत्स्यति। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी के राजा उदयन थे। इस नगरी का उल्लेख महाभारत में नहीं है, फिर भी इसका अस्तित्व ईसा से कई सदियों पूर्व था। गौतम बुद्ध के समय में कौशांबी अपने ऐश्वर्य के मध्याह्नाकाल में थी। जातक कथाओं तथा बौद्ध साहित्य में कौशांबी का वर्णन अनेक बार आया है। कालिदास, भास और क्षेमेन्द्र कौशांबी नरेश उदयन से संबंधित अनेक लोककथाओं की पूरी तरह से जानकारी थी।

ऐतिहासिक तथ्यसंपादित करें

कौशांबी से एक कोस उत्तर-पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी थी, जिसकी प्लक्ष नामक गुहा में बुद्ध कई बार आए थे। यहीं श्वभ्र नामक प्राकृतिक कुंड था। जैन ग्रंथों में भी कौशांबी का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र की एक कथा में जैन भिक्षुणी चंदना का उल्लेख है, जो भिक्षुणी बनने से पूर्व कौशांबी के एक व्यापारी धनावह के हाथों बेच दी गई थी। इसी सूत्र में कौशांबी नरेश शतानीक का भी उल्लेख है। इनकी रानी मृगावती विदेह की राजकुमारी थी। मौर्य काल में पाटलिपुत्र का गौरव अधिक बढ़ जाने से कौशांबी समृद्धिविहीन हो गई। फिर भी अशोक ने यहाँ प्रस्तरस्तम्भ पर अपनी धर्मलिपियाँ—संवत 1 से 6 तक उत्कीर्ण करवायीं। इसी स्तंभ पर एक अन्य धर्मलिपि भी अंकित है, जिससे बौद्ध संघ के प्रति अनास्था दिखाने वाले भिक्षुओं के लिए दंड नियत किया गया है। इसी स्तंभ पर अशोक की रानी और तीवर की माता कारुवाकी का भी एक लेख है।

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